वक़्फ़ शासन में सुधार: समानता और पारदर्शिता की ओर एक क़दम
वक़्फ़ शासन में सुधार: समानता और पारदर्शिता की ओर एक क़दम

वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम, 2025, जिसे संयुक्त संसदीय समिति (JPC) की विस्तृत सिफारिशों के आधार पर तैयार किया गया है, केवल एक विधायी संशोधन नहीं है—यह भारत की एक सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक और परोपकारी संस्था के प्रबंधन से जुड़े जटिल मुद्दों से निपटने का एक परिवर्तनकारी प्रयास है।
इस्लामिक परंपरा में निहित वक़्फ़, किसी संपत्ति को धार्मिक, परोपकारी या पारिवारिक उद्देश्यों के लिए समर्पित करने की प्रथा है, जो लंबे समय से समुदाय कल्याण का आधार रही है। फिर भी, इसके प्रशासन में पारदर्शिता की कमी, विवादों और असमानताओं ने इसके पवित्र उद्देश्य को कमजोर किया है। इस अधिनियम में किए गए संशोधन इन समस्याओं का सीधे सामना करते हैं और वक़्फ़ की कल्पना एक ऐसे आधुनिक भारत के संदर्भ में करते हैं जहाँ पारदर्शिता, निष्पक्षता और समावेशिता मूलभूत सिद्धांत हैं। यह सुधार परंपरा और न्याय व उत्तरदायित्व की मांगों को संतुलित करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
इस अधिनियम का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष वक़्फ़ की परिभाषा में किया गया मूलभूत परिवर्तन है। धारा 2 की उपधारा (2A) में स्पष्ट किया गया है कि मुसलमानों द्वारा किसी अन्य कानून के तहत बनाए गए ट्रस्ट वक़्फ़ की श्रेणी में नहीं आएंगे। यह कोई छोटा बदलाव नहीं है। वर्षों से ट्रस्ट और वक़्फ़ को एक समान मानने से मुस्लिम समुदाय के स्वशासन पर वक़्फ़ बोर्ड का नियंत्रण बढ़ गया था। इस संशोधन के माध्यम से मुसलमानों को अपने ट्रस्टों का स्वतंत्र रूप से संचालन करने की आज़ादी मिलती है, जिससे नौकरशाही हस्तक्षेप कम होता है और समुदाय की विविधता को सम्मान मिलता है।
धारा 3, उपधारा 3(r) में किए गए संशोधन के तहत केवल वे मुसलमान जो संपत्ति के वैध मालिक हैं और जिसे वे हस्तांतरित कर सकते हैं, वक़्फ़ घोषित कर सकते हैं। यह 2013 के उस संशोधन को उलटता है जिसमें गैर-मुसलमानों को वक़्फ़ घोषित करने की अनुमति दी गई थी। यह बदलाव वक़्फ़ की धार्मिक पहचान को मजबूत करता है और दुरुपयोग की संभावनाओं को रोकता है।
इसी तरह, धारा 3(r)(i) के तहत “प्रयोग द्वारा वक़्फ़” (Waqf by user) की परिभाषा को हटाया गया है। इससे वे संपत्तियाँ जो केवल परंपरागत उपयोग के आधार पर वक़्फ़ मानी जाती थीं, अब तभी वक़्फ़ मानी जाएंगी जब वे पंजीकृत हों, या विवाद उत्पन्न हो, या वे सरकारी हों। यह संशोधन वर्तमान व्यवस्थाओं को यथावत रखते हुए भविष्य के लिए स्पष्टता प्रदान करता है।
एक प्रमुख प्रगतिशील कदम धारा 3(r)(iv) और धारा 3A(2) में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करना है। वक़्फ़-अल-अौलाद (पारिवारिक वक़्फ़) में अब महिला उत्तराधिकारियों को उनका वैध हिस्सा सुनिश्चित किया गया है। विधवा, तलाकशुदा महिलाओं और अनाथों की देखरेख भी वक़्फ़ के दायरे में आ सकती है यदि वक़्फ़ देने वाले (वाक़िफ़) की मंशा हो। यह नारी-सशक्तिकरण की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है जो वक़्फ़ को करुणा और न्याय के उसके मूल उद्देश्य से जोड़ता है।
पारदर्शिता को सुनिश्चित करने के लिए धारा 3B(1) के तहत पंजीकृत वक़्फ़ संपत्तियों के मुतवल्ली को छह माह के भीतर संपत्ति का विवरण एक केंद्रीय पोर्टल पर अपलोड करना अनिवार्य किया गया है। वक़्फ़ न्यायाधिकरण छह महीने की अतिरिक्त मोहलत दे सकता है। धारा 5(2A) के तहत राज्य सरकारों को सर्वेक्षण डेटा अपलोड करने की समयसीमा को 15 से बढ़ाकर 90 दिन कर दिया गया है। हालांकि, ग्रामीण क्षेत्रों की छोटी वक़्फ़ संस्थाएं तकनीकी कठिनाइयों का सामना कर सकती हैं, इसलिए सरकार को बुनियादी ढांचे और प्रशिक्षण में निवेश करना होगा।
धारा 3C(2) के तहत यदि किसी सरकारी संपत्ति को गलती से वक़्फ़ घोषित कर दिया गया हो, तो अब कलेक्टर से ऊपर रैंक का एक “नामित अधिकारी” जांच करेगा। जब तक जांच पूरी नहीं होती, उस संपत्ति को वक़्फ़ नहीं माना जाएगा। यह एक निष्पक्ष व्यवस्था है जो वर्षों की न्यायिक प्रक्रिया को बचा सकती है।
धारा 13(2A) के तहत बोहरा और आगा खानी समुदायों के लिए पृथक वक़्फ़ बोर्ड बनाए जा सकते हैं। यह समावेशिता का परिचायक है और भारत की बहुलतावादी भावना को दर्शाता है।
धारा 83 के तहत वक़्फ़ न्यायाधिकरणों का पुनर्गठन कर उन्हें तीन सदस्यीय बनाए रखने का निर्णय लिया गया है, जिससे विचार-विमर्श की गुणवत्ता बनी रहे। एक सदस्य को मुस्लिम कानून और न्यायशास्त्र में विशेषज्ञ होना अनिवार्य किया गया है, जिससे धार्मिक और कानूनी सुसंगतता सुनिश्चित होती है।
अंततः, धारा 107 के तहत धारा 40A लागू कर वक़्फ़ विवादों पर सीमित समय स…