मैं हूँ वह शमशान, जहाँ जलती हैं मेरे सपनों की चिताएँ

मैं हूँ वह शमशान, जहाँ जलती हैं मेरे सपनों की चिताएँ

मैं हूँ वह शमशान, जहाँ जलती हैं मेरे सपनों की चिताएँ

मेरा शमशान

मैं हूँ वह शमशान,  
जहाँ जलती हैं मेरे सपनों की चिताएँ।
और धुआँ बनकर उड़ जाती है 
मेरी आशाएँ।
पर फिर भी राख में छुपा रहता है 
एक अंगार!  
मेरे माथे पर लिखी है जाति की रेखा,  
मेरे हाथों में जन्मजात है कालिख की लकीर,  
पर मेरी आँखों में ज्वाला-सा जलता है प्रश्न –  
"क्यों मैं हूँ तुम्हारे लिए केवल एक 'नाम'?"  
तुम कहते हो – अछूत!,  
मैं कहता हूँ – अनूठा!  
तुम्हारी वेदियों से टकराकर,  
मेरी चेतना बन गई है वज्र!  
मेरे पाँवों के निशान,  
तुम्हारे मंदिरों के द्वार तक 
जाते हैं,  
पर देवता भी चुप रहते हैं,  
जब पुजारी मुझे ठोकर मारकर निकाल देता है!  
मैं हूँ वह अकेला पत्थर,  
जिस पर तुम्हारे पैरों ने घिस दिया है मेरा नाम,  
पर अब मैं उठ खड़ा हूँ,  
और मेरी चुप्पी तुम्हारे शोर को चीर देगी!  

डॉ. इन्दुमति सरकार

798-296-3591