पहलगाम हमले में स्कैच-झूठ का पर्दाफाश: क्या सरकार के पास कोई जवाब है?

पहलगाम हमले में स्कैच-झूठ का पर्दाफाश: क्या सरकार के पास कोई जवाब है?

पहलगाम हमले में स्कैच-झूठ का पर्दाफाश: क्या सरकार के पास कोई जवाब है?


कश्मीर में एक बार फिर तथ्यों से परे राजनीतिक आख्यानों ने सच को दबाने की कोशिश की है। पहलगाम हमले के बाद जिस तरह तीन संदिग्ध आतंकियों के स्कैच जारी किए गए, और 'सिंदूर ऑपरेशन' की सफलता का प्रचार किया गया, वह अब राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की रिपोर्ट से कटघरे में खड़ा है। NIA ने स्पष्ट किया है कि इन स्कैच में जिन लोगों को संदिग्ध बताया गया था, उनका इस घटना से कोई संबंध नहीं है। अब यह सवाल उठना लाज़िमी है कि फिर वह स्कैच जारी क्यों किए गए थे और किन्हें बचाने या फंसाने के लिए?

# NIA की रिपोर्ट ने खोली पोल

इस वर्ष अप्रैल में पहलगाम के पास हुए हमले को लेकर सरकार ने तीन 'संदिग्ध आतंकियों' के स्कैच जारी किए थे। तत्काल ‘सिंदूर ऑपरेशन’ को सफलता बताया गया और मीडिया ने इसे एक बड़े आतंकी मॉड्यूल के भंडाफोड़ के रूप में प्रचारित किया।
लेकिन अब "NIA" ने अपनी जांच में यह स्वीकार किया है कि उन स्कैच में जिन लोगों को आतंकवादी बताया गया, उनका इस घटना से कोई लेना-देना नहीं था। जिन स्थानीय लोगों—परवेज़ और वशीर—के घर के पास कथित आतंकियों ने डेरा डाला था, उन्होंने उन स्कैच को देखकर साफ कहा कि वे व्यक्ति वही नहीं थे। प्रत्यक्षदर्शी पर्यटकों ने भी यही बात कही।

यह केवल एक चूक नहीं, बल्कि एक राजनीतिक स्क्रिप्ट की ओर संकेत करता है।

# प्रश्न खड़े करती है यह ‘गलती’

1. क्या स्कैच जानबूझकर जारी किए गए थे, ताकि कश्मीरियों को आतंकवाद से जोड़ा जा सके?
2. क्या इन झूठे स्कैचों के ज़रिए किसी और को बचाने या वास्तविक हमलावरों को छुपाने का प्रयास किया गया?
3. कश्मीर को केंद्र शासित राज्य बनाकर क्या यह सुनिश्चित किया गया है कि यहां कानून और न्याय केवल गृहमंत्रालय की इच्छा पर चले?

पृष्ठभूमि: सुरक्षा चूक या पूर्व नियोजित साज़िश?

इस हमले से कुछ ही दिन पहले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा पहलगाम की सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा की गई थी। इसके बाद बेसरन चेकपोस्ट से सुरक्षाबल हटाए गए। और कुछ ही समय बाद—चार हमलावर आते हैं, धर्म पूछते हैं, और 26 यात्रियों को गोलियों से छलनी कर देते हैं।
आश्चर्यजनक यह है कि तीन स्थानीय मुस्लिम कश्मीरी भी, जो पर्यटकों की रक्षा में सामने आए, मारे गए। न तो गृहमंत्रालय ने उन्हें श्रद्धांजलि दी, न ही मीडिया ने उन्हें ‘वीर’ बताया।

क्या यह हमला सिर्फ 'जाने-अनजाने’ हुआ था या सत्ता-राजनीति में ‘सुनियोजित शहादत’ की स्क्रिप्ट थी?

# पुलवामा से पहलगाम तक: रिपीटिंग पैटर्न?

पुलवामा हमले की तरह, इस घटना में भी गंभीर सुरक्षा चूक रही। आज तक पुलवामा में इस्तेमाल आरडीएक्स के स्रोत पर सरकार चुप है। वहां भी 'आतंकवाद' के नाम पर एक भावनात्मक लहर खड़ी कर चुनाव में लाभ लिया गया था।
अब पहलगाम में वही 'स्क्रिप्ट'? क्या कश्मीर का हर दर्द सिर्फ चुनावी हथियार बन गया है?

# सरकार की ‘मौन नीति’ और मीडिया की मिलीभगत

जब NIA जैसी केंद्रीय एजेंसी सवाल खड़े करती है, तो गृहमंत्री को जवाब देना चाहिए। लेकिन गृहमंत्री मौन हैं। मीडिया ने इसे ब्रेकिंग न्यूज़ नहीं बनाया।
कश्मीर में वर्षों से यह पैटर्न रहा है—मुस्लिम कश्मीरियों को दोषी घोषित करो, गिरफ्तार करो, या मारो और बाद में ‘पता चलता’ है कि वे निर्दोष थे।

# क्या हम सच में आतंकवाद से लड़ रहे हैं या राजनीतिक आख्यान से?

जब सरकारें प्रचार और भावनात्मक उन्माद के सहारे खतरनाक सुरक्षा मुद्दों का राजनीतिकरण करती हैं, तो देश की सुरक्षा, न्याय और लोकतंत्र तीनों संकट में पड़ते हैं।
पहलगाम की घटना, NIA की रिपोर्ट और गृहमंत्रालय की चुप्पी—तीनों मिलकर यह स्पष्ट करते हैं कि अब एक सच्ची, निर्भीक और स्वतंत्र जांच की आवश्यकता है।

कश्मीर की हर गोली, हर शव, और हर झूठे स्कैच के पीछे कोई न कोई साजिश है—जिसका खुलासा अब देश के सामने होना चाहिए।