इस्लाम को अहिंसा

इस्लाम को हिंसा, असहिष्णुता और कट्टरता से जोड़कर देखा जाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण : मौलाना सईदूर रहमान

कहा : धर्म को अंधभक्ति के बजाय विवेक, करुणा और सत्य की दृष्टि से समझें

कैथल, 24 जुलाई (कृष्ण प्रजापति): आज के दौर में इस्लाम को हिंसा, असहिष्णुता और कट्टरता से जोड़कर देखा जाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। इसी संदर्भ में जमियत उलेमा-ए-हिंद के कैथल जिला अध्यक्ष मौलाना सईदूर रहमान ने एक विचारोत्तेजक और संतुलित बयान जारी करते हुए कहा कि इस्लाम की सही समझ तब तक नहीं हो सकती जब तक हदीसों और कुरान को संदर्भ सहित और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से न पढ़ा जाए।

मौलाना सईदूर रहमान ने कहा कि हदीसें पैगंबर मुहम्मद (स.अ.) के जीवन और संदेशों का प्रतिबिंब हैं, लेकिन अफसोस की बात है कि कुछ तत्व इनका दुरुपयोग कर इस्लाम की छवि को कलंकित कर रहे हैं। उग्रवादी संगठनों द्वारा हदीसों को संदर्भ से काटकर प्रस्तुत करना इस्लाम के असली संदेश, शांति, करुणा और न्याय से विश्वासघात है।

उन्होंने स्पष्ट किया कि पैगंबर ने महिलाओं को शिक्षा, सम्मान और नेतृत्व के अवसर दिए। हज़रत आयशा (र.अ.) जैसी महान विदुषी इसका प्रमाण हैं, जिनसे सैकड़ों सहाबा ने ज्ञान प्राप्त किया लेकिन आज कुछ लोग मनगढ़ंत कथनों के आधार पर महिलाओं को शिक्षा से वंचित कर रहे हैं, जो कि इस्लाम की मूल भावना के विरुद्ध है।

मौलाना ने चिंता जताई कि कुछ शासक और प्रभावशाली लोग हदीसों का इस्तेमाल सत्ता को कायम रखने के लिए करते हैं। ज़ालिम हाकिम की आज्ञा मानो’ जैसे कथन संदर्भ से काटकर पेश किए जाते हैं, जिससे इस्लाम का मूल आधार, जवाबदेही और परामर्श कमजोर होता है। उन्होंने कहा कि हदीसों की गलत व्याख्या न केवल मुस्लिम समाज में भ्रम और टकराव को जन्म देती है, बल्कि गैर-मुस्लिमों के मन में भी इस्लाम को लेकर ग़लत धारणाएं पैदा करती है। इस चुनौती से निपटने के लिए शिक्षा, आलोचनात्मक सोच और प्रमाणिक धार्मिक मार्गदर्शन बेहद ज़रूरी है।

मौलाना सईदूर रहमान ने सभी मुसलमानों से अपील करते हुए कहा कि वे हदीस और कुरान की शिक्षा प्रामाणिक विद्वानों से प्राप्त करें, और धर्म को अंधभक्ति के बजाय विवेक, करुणा और सत्य की दृष्टि से समझें। उन्होंने पैगंबर के इस कथन को भी याद दिलाया कि ज्ञान प्राप्त करना हर मुसलमान का कर्तव्य है।

अंत में मौलाना ने कहा कि यदि हम कुरान और हदीस को सही संदर्भ में, करुणा और विवेक की दृष्टि से समझें, तो इस्लाम की वह छवि सामने आएगी जो शांति, न्याय और मानवता का पैगाम देती है। यही इस समय की सबसे बड़ी जरूरत है।