जब सब नवकार के पीछे भाग रहे थे, तब गुलालवाड़ी वालों ने नमोकार पकड़ लिया
जब सब नवकार के पीछे भाग रहे थे, तब गुलालवाड़ी वालों ने नमोकार पकड़ लिया

सवाल तो बनता हैं—क्या नमोकार मंत्र को नवकार बनाना ज़रूरी था? क्या यही हमारी धार्मिक जागरूकता हैं कि हम जो बोले जा रहे हैं, वही सही मानते जा रहे हैं? और क्या ये भी ज़रूरी था कि हर आयोजन, हर बैनर, हर जाप सभा में ‘नवकार’ ही लिखा जाए, भले ही शास्त्र ‘णमोकार’ कह-कहकर थक जाए?
इन तमाम सवालों के बीच मुंबई की गुलालवाड़ी से एक सधी हुई, सच्ची और साहसी आवाज़ आई—श्री गोडवाड ओसवाल जैन ट्रस्ट मंडल की!
जी हां, 9 अप्रैल 2025 को जब सारे देश में “विश्व नवकार महामंत्र दिवस” की गूंज सुनाई दे रही होगी,
गुलालवाड़ी में व्याख्यान हॉल से गूंजेगा—“णमो अरिहंताणं…”
और सबसे अहम बात—यहां ‘नमोकार’ को ‘नमोकार’ ही कहा गया हैं।
अब ये छोटी सी बात लग सकती हैं, पर सोचिए—जब पूरी भीड़ ‘नव’ में उलझी हो, तो ‘णमो’ बोलने का साहस कौन करता हैं?
जब बाकी संस्थाएं शास्त्रों की शरण में ‘भेद’ ढूंढ़ रही हैं, तब गुलालवाड़ी वालों ने कह दिया—जो शुद्ध हैं, वही सच है; और जो सच हैं, वही सार्वजनिक होना चाहिए।
तो सवाल फिर से—क्या हम अब भी शब्दों को अपभ्रंश बना कर प्रचार करेंगे?
या अब वक्त आ गया हैं कि हम “नमोकार” के मूल स्वरूप, उसकी गहराई और भावना को समझें, अपनाएं और प्रचारित करें?
गोडवाड़ ओसवाल जैन ट्रस्ट मंडल की इस पहल ने न सिर्फ मंत्र को उसकी असल पहचान दी हैं, बल्कि पूरे समाज को सोचने पर मजबूर भी किया हैं।
तो आइए, 9 अप्रैल को सिर्फ जाप करने नहीं,
शुद्धता और सच को स्वीकार करने के लिए भी व्याख्यान हॉल पहुंचें!
क्योंकि जब धर्म की रक्षा करनी हो,
तो शुरुआत शब्दों की शुद्धता से ही होती हैं!